हमारी आँख वह बिंदु है फूटती हैं जहाँ से दस दिशाएँ नाक की सीध में जा रहे जो मेरे पाँव वह मेरे आँख के इनकार की दिशा है
हिंदी समय में प्रेमशंकर शुक्ल की रचनाएँ